My odia Poem Anurap translated into English and Hindi by eminent reviewer & translator honourable Raj Kishor Pattnaik
Humbled & Grateful.
ଅନୁତାପ!
ଭାବୁଛି କିଛି ଲେଖିବି
କିନ୍ତୁ କଣ ଲେଖିବି
ଯନ୍ତ୍ରଣା ରେ ଜର୍ଜରିତ ହୃଦୟ ର ବ୍ୟଥା
ମୁଁ କହି ପାରୁନି
ସେ ମୋ ପାଇଁ ଅଜଣା ଓ ଅପରିଚିତ
ଶବ୍ଦ ଗୁଡା ବିଞ୍ଚି ହୋଇ ପଡିଛି
ଯେପରି ଛିଣ୍ଡା ମୁକ୍ତାର ମାଳା ପରି
ତାହା ପ୍ରେମ ର ଚି଼ହ୍ନ ପରି
ଚିନ୍ହା ମୁହଁ ଏଠି ଅଜଣା
ତଥାପି ମୁଁ ସାଇତି ରଖିଛି
ମୁଁ ଆଜି ଅନୁତପ୍ତ
ତୁମକୁ ଭୁଲ ବୁଝିଛି
ଭଲ ବି ପାଉଥିଲି
ହେଲେ ଭୁଲି ହଉନି!
©️®️ଡ଼କ୍ଟର ପ୍ରସନ୍ନ କୁମାର ଦଳାଇ
କବିସୂର୍ଯ୍ୟନଗର
ଅଧ୍ୟାପକ ଇରାଂଜି ଭାଷା ଓ ସାହିତ୍ୟ ବିଭାଗ
ଗଞ୍ଜାମ
Translated into English & Hindi.
Translation in English
Repentance
I wish to write something,
Yet, what shall I pen?
The agony of a heart ravaged by pain
Is beyond my words to convey.
Those words, once vibrant,
Now lie unfamiliar and distant—
Scattered like a broken string of pearls,
Like remnants of love’s delicate imprint.
The face, once cherished,
Now appears unrecognizable, unknown.
Still, I treasure it within my heart.
Today, I am filled with remorse.
I misunderstood you,
Though you loved me deeply.
Yet, this lapse of memory,
I shall never forget!
©️®️Dr. Prasanna Kumar Dalai
Kabisuryanagar
Professor, English Language and Literature Department
Ganjam
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Translation in Hindi
पश्चाताप
कुछ लिखने का सोचता हूँ,
लेकिन क्या लिखूँ?
दर्द से छलनी हृदय की वेदना
शब्दों में व्यक्त कर पाना असंभव है।
वो शब्द, जो कभी जीवंत थे,
अब अजनबी और दूर लगते हैं—
जैसे टूटी हुई मोतियों की माला,
जैसे प्रेम की कोमल निशानी।
वो चेहरा, जो कभी प्रिय था,
अब अनजाना और अपरिचित लगता है।
फिर भी, उसे मैंने अपने दिल में बसाया है।
आज मैं पछतावे से भरा हूँ।
मैंने तुम्हें गलत समझा,
हालाँकि तुमने मुझसे गहरा प्रेम किया।
लेकिन इस भूल को,
मैं कभी भुला नहीं पाऊँगा!
©️®️डॉ. प्रसन्न कुमार दलाई
कबिसूर्यनगर
प्रोफेसर, ईरांजी भाषा और साहित्य विभाग
गंजाम